किसान परंपरागत तरीके छोड़कर वैज्ञानिक और पर्यावरण हितैषी तकनीकों को अपनाएं

किसान परंपरागत तरीके छोड़कर वैज्ञानिक और पर्यावरण हितैषी तकनीकों को अपनाएं: उपायुक्त डॉ. वीरेंद्र कुमार दहिया

संवाददाता सागर गोयल पानीपत: हरियाणा सरकार द्वारा पराली प्रबंधन को लेकर व्यापक और प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार का स्पष्ट संदेश है कि अब पराली कोई समस्या नहीं, बल्कि किसानों के लिए जैविक खाद और अतिरिक्त आय का साधन बन सकती है। इसी दिशा में जिला प्रशासन पानीपत भी सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।

जिला उपायुक्त डॉ. वीरेंद्र कुमार दहिया ने कहा कि हरियाणा सरकार किसानों के हित में कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। उन्होंने कहा कि पराली जलाना न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता को भी कम करता है। अब समय आ गया है कि किसान पारंपरिक तरीकों को छोड़कर वैज्ञानिक और पर्यावरण हितैषी तकनीकों को अपनाएं।

डॉ. दहिया ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है, जिससे किसान आसानी से मशीनें खरीदकर पराली को खेत में ही सड़ाने की प्रक्रिया अपना सकते हैं। इन-सीटू पराली प्रबंधन को अपनाने वाले किसानों को 1200 रुपए प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि भी प्रदान की जा रही है।

इसके अलावा, डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस (DSR) विधि अपनाने वाले किसानों को 4500 रुपए प्रति एकड़ तथा वैकल्पिक फसलों को अपनाने पर 8000 रुपए प्रति एकड़ की सहायता राशि दी जा रही है। इससे न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि जल संरक्षण और मिट्टी के स्वास्थ्य में भी सुधार होगा।

डीसी ने कहा कि जो किसान पराली जलाने की प्रक्रिया अपनाते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। नियमों के तहत पराली जलाने के दोषी पाए जाने पर 5 हजार से 30 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

डॉ. दहिया ने किसानों से अपील की कि वे सरकार की योजनाओं का लाभ उठाएं और पराली को नुकसान नहीं, बल्कि लाभ का साधन बनाएं। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक अपनाकर किसान न केवल पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अपनी आर्थिक स्थिति भी मजबूत बना सकते हैं।

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